छत्तीसगढ़
राज्य का विस्तार 17 46’ से 24 06’ उत्तर अक्षांश तथा 80 15’ से 84 51’ पूर्वी देशांतर के मध्य है। राज्य में 4 प्रमुख नदी प्रणालियों क्रमशः महानदी, नर्मदा, गोदावरी और वैनगंगा का जल ग्रहण क्षेत्र शामिल है।
इंद्रावती, हसदेव, शिवनाथ, अरपा, ईब, महानदी राज्य की प्रमुख नदियाँ है। राज्य की जलवायु मुख्यतः सह-आर्द्र तथा औसत वार्षिक वर्षा 1200 से 1500 मि.मि. है।
नवगठित छत्तीसगढ़ राज्य की स्थापना 1
नवम्बर 2000 को हुई है। छत्तीसगढ़ राज्य का भौगोलिक क्षेत्रफल 1,35,224 वर्ग किलोमीटर है जो कि प्रदेश के भौगोलिक क्षेत्रफल का 44.2% प्रतिशत है। छत्तीसगढ़ राज्य वन
क्षेत्रफल की दृष्टि से देश में तीसरे स्थान पर है। छत्तीसगढ़ वनों की दृष्टि से
सम्पन्न राज्य है। राज्य में आरक्षित वन, संरक्षित वन और अवर्गीकृत वन है। इन वनों में मुख्यतः साल, बबूल, धबरा, तेंदु, टीक, महुआ, अंजन और हर्रा के वृक्ष है। यह अच्छी
लकड़ी के स्त्रोत है। वन किसी भी राष्ट्र की अति मूल्यवान सम्पदा होते है। राज्य के
वनों को दो प्रमुख वर्गों में विभाजित किया गया है, यथा उष्णकंटिबंधीय आर्द्र पर्णपातीय वन एवं उष्णकंटिबंधीय शुष्क
पर्णपातीय वन। राज्य की दो प्रमुख वृक्ष प्रजातियाँ साल (शोरिया - रोबस्टा) तथा सागौन (टेक्टोना - ग्रन्डिस) है। भूतल भाग
में नाना प्रकार की वनस्पतियाँ है जो पर्यावरणीय संतुलन की दृष्टि से महत्वपूर्ण
तो है ही, साथ ही वे वन-वासियों के आजीविका का प्रमुख साधन भी है। जैव-भौगोलिक
दृष्टिकोण से छत्तीसगढ़ राज्य डेकन जैव क्षेत्र में शामिल है तथा मध्य भारत की
प्रतिनिधि वन्य-प्राणी जैसे बाद्य (पेंथरा - टाइग्रिस), तेंदुआ, गौर, सांभर, चीतल, जंगली-सुअर एवं नील-गाय से परिपूर्ण है। दुर्लभ
वन्य-प्राणी जैसे वन-भैंसा (बूबैलस-बूबैलिस) तथा पहाड़ी-मैना (ग्रैकुला-इंडिका)
इस राज्य की बहुमूल्य धरोहर है जिन्हें क्रमशः राज्य-पशु एवं राज्य-पक्षी
घोषित किया गया है। साल-वृक्ष को राज्य-वृक्ष घोषित किया गया है। यह राज्य कोयला, बॉक्साईट, लोहा, चूना, हीरा, कोरंडम, स्वर्ण, टिन इत्यादि खनिज संसाधनों से परिपूर्ण
है, जो मुख्यतः वन-क्षेत्रों में ही पाये
जाते है।
छत्तीसगढ़ राज्य वन-विकास निगम लिमिटेड
का गठन मुख्य रूप से जैव-विविधता एवं वित्तीय दृष्टिकोण से वन क्षेत्रों को
उत्कृष्ट बनाने हेतु मानव-निर्मित वन विकसित करने वन-विभाग के सहयोग एवं आयोग की
सिफ़ारिश के आधार पर राज्य के विभाजन के बाद छत्तीसगढ़ राज्य वन विकास निगम के रूप
में हुई है। इसके अंतर्गत हम निगम का गठन, स्थापना, उद्देश्य, पूंजीगत-संरचना, परियोजना-मण्डल एवं अन्य निगम द्वारा संचालित
परियोजनाओं का अध्ययन किया है। इस निगम का छत्तीसगढ़ राज्य के आर्थिक-विकास में योगदान का अध्ययन किया है।
छत्तीसगढ़ राज्य वन-विकास निगम लिमिटेड
के अंतर्गत बारनवापारा परियोजना मण्डल, पानाबरस
परियोजना मण्डल, कोटा परियोजना मण्डल, अंतागढ़, परियोजना मण्डल, कवर्धा परियोजना मण्डल, सरगुजा, मनेन्द्रगढ़,
औद्योगिक वृक्षारोपण परियोजना मण्डल का
अध्ययन किया है। इस निगम की स्थापना का मुख्य उद्देश्य बहुमूल्य वन प्रजातियों का
रोपण करना, खान-क्षेत्रों के पुनर्वास हेतु
मिश्रित प्रजातियों का रोपण करना, बिगड़े
वन-क्षेत्रों में सागौन, बाँस एवं अन्य मिश्रित प्रजाति के पौधों का
रोपण करना एवं वन क्षेत्रों में जैव-विविधता को बनाये रखना, वन्य-प्राणी वर्ग का रख-रखाव, संरक्षण एवं विकास करना है। छत्तीसगढ़ राज्य वन-विकास निगम द्वारा
संचालित परियोजनाएँ, सागौन एवं बाँस का रोपण, बिगड़े वनों का सुधार एवं विभिन्न
शासकीय उपक्रमों व संस्थाओं हेतु रोपण करना शामिल है। छत्तीसगढ़ राज्य वन-विकास
निगम लिमिटेड द्वारा औद्योगिक इकाईयों के क्षेत्रों में समस्त रोपण-कार्य करने के लिए निगम को एजेन्सी के रूप में अधिकृत किया गया है।
प्रदेश की बारहमासी नदियों के तटों पर भू-क्षरण रोकने एवं नदियों में पानी के बहाव
को बनाये रखने के उद्देश्य से नदी तट
वृक्षारोपण योजना लागू की गई है। इस प्रकार छत्तीसगढ़ राज्य का वन-विकास निगम
लिमिटेड द्वारा संचालित विभिन्न योजनाओं से राज्य को आर्थिक, प्राकृतिक, सामाजिक एवं राष्ट्रीय लाभ मिल रहा है।
राज्य के लगभग 50 प्रतिशत गाँव वनों की सीमा से 5 कि.मी. की परिधि के अंदर आते है, जहाँ के निवासी मुख्यतः आदिवासी है एवं
आर्थिक रूप से पिछड़े है जो जीविकोपार्जन हेतु मुख्यतः वनों पर निर्भर है। इसके अतिरिक्त बड़ी संख्या में गैर आदिवासी, भूमिहीन एवं आर्थिक-दृष्टि से पिछड़े
समुदाय भी वनों पर आश्रित है। वानिकी-कार्यों से प्रतिवर्ष लगभग 07 करोड़ मानव-दिवस रोजगार का सृजन होता
है। वनों से ग्रामीणों को लगभग 2000
करोड़ रुपये का लघु वनोपज़ एवं अन्य निस्तार सुविधाएँ प्राप्त होती है। इस प्रकार छत्तीसगढ़ के
संवहनीय एवं सर्वागींण विकास परिदृश्य में वनों का विशिष्ट स्थान है।
प्रस्तुत शोध-अध्ययन ’’छत्तीसगढ़ राज्य वन-विकास निगम लिमिटेड
का छत्तीसगढ़ राज्य के आर्थिक - विकास में योगदान’’ के अंतर्गत हमने शोध - विषय को 7 अध्यायों में विभक्त किया है। प्रथम अध्याय प्रस्तावना के अंतर्गत
भूमिका, उद्देश्य, शोध - प्रविधि, परिकल्पना, शोध की सीमाएँ, शोध-साहित्य का पुनरावलोकन एवं भविष्य
में शोध के संभाव्य योगदान पर प्रकाश डाला गया है। छत्तीसगढ़ अंचल जिस प्रकार धान के अधिकाधिक उत्पादन के कारण ‘’धान का कटोरा’’ कहा जाता है, उसी प्रकार यह क्षेत्र वन-संपदा के नाम
से सम्पूर्ण देश में एक विशेष एवं महत्वपूर्ण स्थान रखता है। वन प्रकृति पदत्त
अमूल्य धरोहर है। छत्तीसगढ़ राज्य ने जनोन्मुखी वन-नीति बनाई है, जिसने वन-प्रबंधन को एक नई-दिशा देने
में ठोस पहल की है। छत्तीसगढ़ राज्य वन-विकास निगम लिमिटेड का गठन कम्पनीज़ एक्ट 1956 के तहत् पंजीयन दिनाँक 22/05/2001 को किया गया। छत्तीसगढ़ राज्य वन विकास
निगम लिमिटेड का गठन मुख्य रूप से जैव-विविधता एवं
वित्तीय दृष्टिकोण से वन-क्षेत्रों को उत्कृष्ट बनाने हेतु मानव-निर्मित वन विकसित
करने वन-विभाग के सहयोग एवं आयोग की सिफ़ारिश के आधार पर राज्य के विभाजन के बाद
छत्तीसगढ़ राज्य वन-विकास निगम के रूप में हुई है। किसी भी शोध को करने के पीछे
इसका मुख्य उद्देश्य किसी न किसी कारण को खोजना होता है। इस शोध-विषय के चयन या
अध्ययन का मुख्य उद्देश्य छत्तीसगढ़ राज्य वन विकास निगम लिमिटेड की कार्य-प्रणाली
का अध्ययन कर उसकी वर्तमान आर्थिक-स्थिति को स्पष्ट करना तथा वन-विभाग राज्य की ‘‘वन सम्पदा एवं जैव- विविधता’’ को वर्तमान एवं भावी पीढ़ी के बहुआयामी
उपयोग हेतु संरक्षित रखने एवं संवर्धन के लिए कृत संकल्पित है। इसलिए वनों के बचाव
के लिए जन-सामान्य में जागरूकता लाना है। छत्तीसगढ़ राज्य के आर्थिक-विकास में निगम
की भूमिका को परिलक्षित करना है। वर्तमान
युग गतिशीलता का युग होने के साथ ही साथ उसमें नित नए परिवर्तन समाज के मूल्य एवं
मान्यताओं में भी परिवर्तन करते है, किन्तु इन परिवर्तनों के साथ ही साथ मानव-सभ्यता का विकास भी निरंतर होता चला गया है। इस प्रकार शोध
का अर्थ सामाजिक घटनाओं या विद्यमान सिद्धांतों के संबंध में नवीन
ज्ञान की प्राप्ति के लिए प्रयोग में लाई गई वैज्ञानिक - पद्धति ‘‘सामाजिक-शोध’’ है। शोध-प्रविधि अपने आप ही शोध से संबंधित समस्या से उत्पन्न हो जाती है। अध्ययन-कार्य
के सम्पादन के लिए आवश्यकतानुसार प्राथमिक एवं द्वितीयक दोनों प्रकार के आँकड़ों का संकलन किया गया है। आँकड़ों का विश्लेषण कर उनके आधार पर
उद्देश्यों के अनुरूप निष्कर्षों तक पहुँचने का प्रयास किया गया है। इस शोध में
प्रश्नावली सांख्यिकीय एवं लेखांकन की तकनीकियों का आवश्यकतानुसार प्रयोग किया
गया है तथा समय-सीमा को ध्यान में रखते हुए 2005-2006 से 2014-2015 तक के आँकड़ों का अध्ययन किया गया है। उपकल्पना
वैज्ञानिक-अनुसंधान के लिए अत्यंत ही महत्वपूर्ण चरण है। अनुसंधान प्रारम्भ करने से पहले शोधकर्ता शोध—विषय से संबंधित कारणों एवं परिणामों के बारे में जो एक निश्चित अवधारणा बना लेता है, उसे ही उपकल्पना कहते है। प्रस्तुत
शोध-अध्ययन में भी परिकल्पनाओं का निर्माण किया गया है। शोध-विषय में छ: उपकल्पनाओं
का निर्माण किया गया है। इन परिकल्पनाओं के अंतर्गत निगम की
योजनाओं,
काँया, परियोजनाओं, उद्देश्यों की पूर्ति, निगम का लाभ एवं निगम का छत्तीसगढ़ राज्य के आर्थिक-विकास में योगदान
का अध्ययन किया गया है। किसी भी प्रकार का शोध-कार्य प्रारम्भ करने के पूर्व परिसीमाएँ निर्धारित कर ली जाती है, इस शोध में पूर्व-शोध का अभाव एवं निगम
द्वारा
प्रस्तुत
आँकड़ों पर निर्भरता रहीं है। पूर्व में वन से संबंधित अनेक शोध हुए है जिनका सहयोग प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रूप
से शोध-विषय में लिया गया है। प्रस्तुत शोध-विषय का संभाव्य योगदान भविष्य में
अत्यधिक है क्योंकि प्रदेश के आय के मुख्य स्त्रोत में 20% वनों का योगदान होता है।
अध्याय-2 छत्तीसगढ़ राज्य का परिचयात्मक विवेचन के अंतर्गत हमने छत्तीसगढ़
राज्य की ऐतिहासिक, भोगौलिक,
आर्थिक एवं प्राकृतिक पृष्टभूमि का अध्ययन किया गया है। 1 नवम्बर 2000 को गठित देश का 26वाँ राज्य ‘‘छत्तीसगढ़’’ यद्यपि एक नवोदित राज्य है, किन्तु इसकी ऐतिहासिक पृष्ठभूमि अत्यधिक महत्वपूर्ण
एवं जिज्ञासापूर्ण है। छत्तीसगढ़ का पहला उल्लेख ऐतिहासिक रूप में रामायण में मिलता है।
छत्तीसगढ़ का प्राचीन नाम ‘‘
दक्षिण-कोसल’’ था। छत्तीसगढ़ नाम की कहानी भी बड़ी रोचक
एवं जिज्ञासापूर्ण है।
‘‘छत्तीसगढ़’’ नामकरण ‘’गढ़ों’’ की गणना के आधार पर किया गया। जब 36 गढ़ों को समाहित कर दिया गया तो वह
कहलाया छत्तीसगढ़ । ‘‘छत्तीसगढ़ ’’ शब्द का सर्वप्रथम प्रयोग ‘‘राजा लक्ष्मीनिधि राय’’ के काल में चारण कवि ‘‘दलराम-राव’’
ने सन् 1487 में किया था। इस प्रकार छत्तीसगढ़
क्षेत्र का इतिहास देश के अन्य भागों के सदृश्य मानव-सभ्यता के विकास से ही संबंधित है। सर्वप्रथम छत्तीसगढ़ राज्य की
स्पष्ट कल्पना करने वाले व्यक्ति थे, ‘‘पं. सुंदरलाल शर्मा’’ ।
अन्ततः 1 नवम्बर 2000 को छत्तीसगढ़ एक स्वतंत्र राज्य के रूप
में भारत के मानचित्र पर अस्तित्व में आया, ‘‘रायपुर’’ को इस अभिनव राज्य की राजधानी बनाई गई।
छत्तीसगढ़ राज्य भौगोलिक पृष्ठभूमि के अंतर्गत छत्तीसगढ़ राज्य के संभाग, जिले एवं सीमावर्ती राज्यों को
सम्मिलित किया गया है। प्रदेश की सीमाएँ भारत के 6 राज्यों की सीमाओं से घिरी हुई है। छत्तीसगढ़ की भौतिक विभिन्नता के
आधार पर इसमें मैदानों, पठारी, पहाड़ी और पाट-प्रदेश स्पष्ट रूप से दृष्टि-गोचर होते है। छत्तीसगढ़
राज्य के भौतिक - विभागों में पहाड़ी-प्रदेश, पठारी-प्रदेश, पाट-प्रदेश,
मैदानी-प्रदेश
में विभक्त किया गया है। छत्तीसगढ़ की मुख्य नदियों का अध्ययन किया गया है एवं अपवाह प्रणालियों, जलवायु, तापमान, जलवायिक—दशाएँ, वर्षा, वायुदाब, ऋतुओं का अध्ययन किया गया है। छत्तीसगढ़
राज्य की आर्थिक—अर्थव्यवस्था के अंतर्गत छत्तीसगढ़
राज्य की अर्थव्यवस्था का अध्ययन किया गया है। प्रदेश की अर्थव्यवस्था कृषि प्रधान
है। आज भी 80 प्रतिशत जनसंख्या कृषि पर आश्रित है, जबकि 5 प्रतिशत जनसंख्या उद्योगों पर निर्भर है। नवगठित छत्तीसगढ़ राज्य
की अर्थव्यवस्था मजबूत है तथा इसके विकास की संभावनाएँ भी अधिक है। इस अध्याय के अंतर्गत सकल
घरेलू उत्पाद, शुद्ध राज्य घरेलू उत्पाद, प्रति व्यक्ति आय का अध्ययन किया गया
है। साथ ही साथ आर्थिक-दृष्टि से विभिन्न क्षेत्रों की स्थिति जैसे खनिज-संपदा, वन-संपदा, जल-संसाधन, ऊर्जा-संसाधन, कृषि-अर्थव्यवस्था, औद्योगिक-अर्थव्यवस्था, परिवहन एवं संचार, सहकारिता, बैंकिंग एवं वित्त व्यापार इत्यादि बातों को सम्मिलित किया गया
है। छत्तीसगढ़ राज्य के सम्पूर्ण क्षेत्रों का विकास होता जा रहा है।
छत्तीसगढ़ राज्य की प्राकृतिक पृष्ठभूमि के अंतर्गत प्रकृति
प्रदत्त प्राकृतिक संसाधनों का अध्ययन किया गया है।
प्रकृति ने छत्तीसगढ़ राज्य की झोली में अमूल्य प्रकृति प्रदत्त उपहार दिये है।
वर्णित अध्याय में खनिज-संपदा यथा कोयला, लौह-अयस्क, चूना-पत्थर, बाँक्सइट टिन, डोलोमाइट, ग्रेनाइट, अभ्रक, यूरेनियम, हीरा, अलेक्कजेंन्ड्राइट, कोरंडम, ग्रेफाइट, ताँबा, सोना, फ्लुओराइट, गारनेट, क्वार्टजाइट, फायरक्ले, चीनी-मिट्टी, संगमरमर, स्फटिक, गेरू, एसबेस्टस, सिलीमिनाइट, आदि को सम्मिलित किया गया है। साथ ही
साथ वन-संपदा, वन्य-उत्पाद, वन्य-जीव, कृषि, कृषि-फसलें, धान, मूँगफ़ल्ली, गन्ना, अलसी, कोदो-कुटकी आदि का अध्ययन किया है। साथ ही साथ में मिट्टी, पशुपालन, सिंचाई, एवं जल-संसाधन, सिंचाई परियोजनाएँ एवं स्ट्रोतो का अध्ययन किया गया है। इस प्रकार प्राकृतिक, भौगोलिक, आर्थिक एवं ऐतिहासिक परिवेशों का अध्ययन अध्याय-2 के अंतर्गत किया गया है।
अध्याय –3 में वर्णित ‘‘छत्तीसगढ़ राज्य की वन-संपदा’’ के अंतर्गत भूमिका, वनों का वर्गीकरण, वनों का महत्व, वन-नीति, वन्य-उत्पाद,
वन्य-जीव, राष्ट्रीय-उद्यान एवं अभ्यारण्य का अध्ययन। पूर्व में ही ज्ञात
है कि छत्तीसगढ़ अंचल वन-संपदा के नाम से
सम्पूर्ण देश में विशेष एवं महत्वपूर्ण स्थान रखता है। वनों की विविधता एवं
बहुलता के कारण ही प्रदेश की अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पहचान बनी हुई है। वनों की सघनता के कारण मिट्टी का क्षरण कम हुआ है, पर्याप्त वन एवं वृक्ष पर्यावरण को
संतुलित करने में सहायक है। प्राकृतिक वनस्पति प्रकृति द्वारा दिया गया
निःशुल्क उपहार है। वनों की सुरक्षा के प्रति हम सबको जागरूक होने की आवश्यकता है।
वनों को मुख्य रूप से तीन भागों में विभाजित किया जाता है। छत्तीसगढ़ के वन उष्णकंटिबधीय आर्द्र पर्णपाती वर्ग के अंतर्गत आते है।
प्रशासकीय, भौगोलिक एवं प्रजातीय आधार पर वनों का वर्गीकरण किया गया है। वनों का महत्व मात्र
मानव जीवन के लिए ही नहीं अपितु सृष्टि में पाये जाने वाले समस्त जीवों के लिये है। वनस्पति मानव जीवन का आधार है।
वनों का महत्व न केवल सामाजिक बल्कि आर्थिक, पर्यावरणीय,
औषधीय एवं ऊर्जा
के रूप में भी महत्व परिकलित होता है। वनों
से हमें प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष दोनों लाभ प्राप्त होते है। वन-प्रबंधन के इतिहास में
देश में तीन बार राष्ट्रीय वन-नीति निर्धारित की गई है। 1894, 1952 व 1988 में नई वन-नीति घोषित की गई जिसमें वन-प्रबंधन
के तत्वों को सम्मिलित किया गया। तत्पश्चात 2001 में पुनः नई वन-नीति का निर्माण किया गया। छत्तीसगढ़ राज्य में पिछले
10 वर्षों से लघु-वनोपजों से प्राप्त होने वाली आय में खासा इजाफा देखा जा
रहा है,
जबकि मुख्य वनोपज का उत्पादन घट रहा है। वनोपज व इन पर आधारित उद्योगों का देश व प्रदेश की अर्थव्यवस्था में
महत्वपूर्ण योगदान है। उत्पादों को मुख्य उपजें एवं गौण-उपजें के अंतर्गत सम्मिलित किया जाता है।
वन्य-उत्पादों से ही राज्य के राजस्व प्राप्ति में भी वृद्धि होती है। प्रदेश के
विकास में वनोत्पाद महत्वपूर्ण भूमिका निभाते है। छत्तीसगढ़ प्रदेश वन्य-जीवों की
दृष्टि से देश में प्रमुख स्थान रखता है। सद्यन वनों की प्रचुरता के कारण वन्य-प्राणी
पर्याप्त विविधता के साथ प्राकृतिक अवस्था में बहुतायत में प्राप्त होते रहते है। वनों की अच्छी स्थिति का द्योतक
ही वन्य-जीवों की उपलब्धता है। वर्तमान में 3 राष्ट्रीय—उद्यान
तथा 11 अभ्यारण्य स्थापित है। वन्य-प्राणियों
की रक्षा को महत्व देने के उद्देश्य से ही प्रदेश में उद्यान
एवं अभ्यारण्य की स्थापना की गयी है।
अध्याय
- 4 ‘‘छत्तीसगढ़ राज्य वन-विकास निगम लिमिटेड
की स्थापना एवं संगठन संरचना’ के
अंतर्गत निगम का परिचय, गठन, स्थापना उद्देश्य, पूँजी-संरचना, सेटअप-प्रबंधन एवं प्रशासनिक-संरचना को सम्मिलित किया गया है।
सांस्कृतिक धरोहर के साथ ही साथ वन हमारी संपत्ति भी है। पारिस्थितिक-साम्य को प्रभावित करने वाले घटकों में वनों का स्थान महत्वपूर्ण है।
छत्तीसगढ़ राज्य वन विकास निगम का गठन दिनाँक 30 अप्रैल 2001 को अधिसूचना जारी कर 1 मई 2001 से निगम का कार्य प्रारम्भ हुआ। निगम का मुख्य उद्देश्य उपयुक्त
वन-क्षेत्रों को सद्यन प्रबंधन के तहत् लेकर उनकी उत्पादकता
में वृद्धि हेतु औद्योगीक
एवं आपारिक दृष्टि से उपयुक्त तेजी से बढ्ने वाली
मूल्यवान प्रजातियों का रोपण करना, गहन वन प्रबंधन करना एवं रोजगार-सृजन इत्यादि बातों को सम्मिलित किया गया है। निगम के
मुख्य सहायक उद्देश्यों को अलग-अलग परिकलित किया
गया है। इसके बाद निगम की पूँजीगत-संरचना को प्रदर्शित किया गया है।
ज्ञात हो कि निगम की अधिकृत अंश-पूँजी
30 करोड़ रु है एवं प्रदत्त अंश
पूँजी 26,555 करोड़ रु है। सेटअप-प्रबंधन के अंतर्गत निगम के 2 क्षेत्रीय एवं 7 मण्डल-कार्यालय का प्रबंधन है। निगम में
कार्यरत एवं स्वीकृत पदों की संख्या वर्णित है। निगम के प्रशासनिक संरचना के
अंतर्गत संचालक-मण्डल के सदस्य एवं प्रशासनिक संरचना को सम्मिलित किया गया है। इस
प्रकार अध्याय –4 में निगम की स्थापना एवं गठन से संबंधित
जानकारी सम्मिलित है।
अध्याय
- 5 ‘‘छत्तीसगढ़ राज्य वन-विकास निगम लिमिटेड
द्वारा संचालित परियोजनाओं एवं योजनाओं’’ के अंतर्गत निगम द्वारा संचालित परियोजनाएँ, मुख्य-योजनाएँ, वन-क्षेत्रों का प्रबंधन, निगम द्वारा संचालित अन्य
योजनाएँ एवं वित्त प्राप्ति के स्त्रोत को शामिल किया गया है। निगम की योजनाओं में
प्रमुख सात परियोजना मंडलों की गठन एवं स्थापना की व्याख्या
की गई है। साथ ही साथ वृक्षारोपण, सागौन
एवं बाँस का अव्यवसायिक रोपण, बिगड़े बाँस वनों का सुधार, औद्योगीक-क्षेत्रों में रोपण, सड़क-किनारे वृक्षारोपण, रोपणियों, वन-औषधि रोपण, नीलगिरी रोपण को शामिल किया गया है।
वन-क्षेत्रों के प्रबंधन के अंतर्गत वन-विभाग से निगम को हस्तांतरित कुल
वन-क्षेत्र 197,157.133
का हेक्टेयर
क्षेत्र
प्रबंधन निगम के छ: परियोजना मंडलों के द्वारा भारत सरकार से अनुमोदित कार्य आयोजना
के अनुरूप किया जाता है। निगम की मुख्य योजनाओं में क्षेत्रीय-परियोजनाओं के
अतिरिक्त निगम द्वारा संचालित अन्य योजनाओं का अध्ययन किया गया है, इसी के
साथ निगम कि मुख्य-योजनाओं को भी शामिल किया गया
है। अंत में निगम को अपनी परियोजनाओं एवं योजनाओं को संचालित करने हेतु वित्त
की आवश्यकता होती है, अतः निगम के वित्त-प्राप्ति के स्त्रोत का अध्ययन किया गया है।
मुख्य रूप से निगम की आय का मुख्य स्त्रोत राजस्व वृक्षारोपण एवं प्राप्त
ब्याज है। निगम को किन-किन साधनों से आय प्राप्त होती है उसकी जानकारी दी गयी
है।
अध्याय 6 ‘‘ छत्तीसगढ़ राज्य वन-विकास निगम लिमिटेड
का छत्तीसगढ़ के आर्थिक-विकास में भूमिका’’ के अंतर्गत निगम द्वारा संचालित योजनाओं की समीक्षा, रोपणियाँ, वन-ग्राम विकास कार्य, विदोहन-कार्य, आय-व्यय, राजस्व-प्राप्ति, अंकेक्षण
की प्रगति एवं वित्तीय स्थिति के विश्लेषण को दृष्टिगत रखते हुए अध्ययन किया गया
है। इसमें पूर्व अध्याय में उल्लेखित योजनाओं को तालिका द्वारा स्पष्ट करते हुए
विश्लेषित किया गया है। विश्लेषण कर प्राप्त परिणाम के आधार पर निगम द्वारा संचालित
विभिन्न योजनाओं की समीक्षा की गई है। निगम की रोपणियों में विभिन्न-परियोजना मंडलों
में उत्पादित पौधों की संख्या को परिकलित किया गया है। वर्षवार तुलना करके निष्कर्ष
तक पहुँचने का प्रयास किया गया है। वर्षवार पौधों की संख्या को प्रदर्शित
किया गया है। वन-ग्राम विकासमूलक कार्य जोकि पूर्ण हो चुका है उसके संबंध में
जानकारी दी गयी है। वन-क्षेत्रों में निगम द्वारा जो
विकासपरख कार्य संचालित किए जाते है उसके बारे में जानकारी प्रदत्त है। विदोहन-कार्य निगम द्वारा
संपादित किए जाते है। वर्षवार विदोहन-कार्य को तालिका की सहायता से प्रदर्शित किया
गया है। इसमें मुख्य रूप से जलाऊ-चट्टे, काष्ठ व व्यापारिक बाँस तथा औद्योगिक बाँस को सम्मिलित किया गया है। निगम
की आय-व्यय में वर्ष 2006 से 2015 तक इन 10 वर्षों में निगम की आय - व्यय को
परिकलित किया गया है एवं अन्तरों के संबंध में विश्लेषण किया गया है।
इसके बाद निगम से सरकार को राजस्व-प्राप्ति का वर्णन किया गया है। विदित हो की
निगम से
प्रतिवर्ष सरकार को राजस्व की प्राप्ति होती है। अंत में निगम की आर्थिक-स्थिति का
विश्लेषण कर अंकेक्षण की प्रगति को दर्शाया गया है। इस प्रकार से
इस अध्याय में हमने निगम से छत्तीसगढ़ राज्य के आर्थिक-विकास में भूमिका को परिलक्षित
करने का प्रयास किया है।
अन्त
में अध्याय-7 के अंतर्गत शोध-विषय से संबंधित निर्माण
किये गये उपकल्पनाओं का परीक्षण, समस्या, सुझाव एवं निष्कर्ष को शामिल किया है।
ज्ञात हो कि शोध - अध्ययन से संबंधित छ: परिकल्पनाओं का निर्माण किया गया
है। प्रश्नावली के द्वारा तथा अन्य प्राप्त आँकड़ों के द्वारा इन उपकल्पनाओं के परीक्षण
को कार्यरूप में परिणित किया गया हैं। कुछ उपकल्पनाएँ सही, तो काँया कुछ उपकल्पनाएँ गलत परिलक्षित हुई है। शोध - समयावधि में जिन-जिन समस्याओं से हमें अवगत होना पड़ा उन समस्याओं की
आख्या की गयी है। साथ ही साथ में शोध-विषय से संबंधित
समस्याओं को प्रदर्शित किया गया है। उपरोक्त समस्याओं को दूर करने हेतु शोध-विषय
से संबंधित तथा दृष्टिगत समस्या से संबंधित सुझावों
को परिलक्षित किया गया है। समस्या से संबंधित ही सुझावों को देने का प्रयास किया गया
है समस्या से ही सुझाव व सुझाव द्वारा ही समस्या का निराकरण संभव है। अंत में निष्कर्ष के अंतर्गत
शोध-विषय ‘‘छत्तीसगढ़ राज्य वन-विकास निगम लिमिटेड
का छत्तीसगढ़ राज्य के आर्थिक-विकास में योगदान’’ के अंतर्गत पूर्ण रूप से शोध-विषय का
गहन अध्ययन कर निष्कर्ष तक पहुँचने का प्रयास किया गया है। अन्तत:
निष्कर्ष के आधार पर हम यह कह सकते है कि छत्तीसगढ़ राज्य वन-विकास निगम की
छत्तीसगढ़ राज्य के आर्थिक - विकास के संबंध में अवहेलना नहीं
की जा सकती है। नवगठित छत्तीसगढ़ राज्य शनै: शनै: विकास की
ओर बढ़ रहा है। वर्तमान समय में छत्तीसगढ़ राज्य सम्पूर्ण आर्थिक एवं प्राकृतिक
संसाधनों से परिपूर्ण है। वन प्रकृति प्रदत्त अमूल्य द्यरोहर
है। अनेक प्रकार के उद्योगों के लिए कच्चे माल के स्त्रोत, लकड़ियाँ, औषधि, फल-फूल कि प्राप्ति वनों से ही प्राप्त
होते है। वनों को संरक्षित रखने हेतु ‘‘वन-विभाग’’ कि स्थापना की
गई है। वन-विभाग के सहयोगी क्षेत्र के
रूप में छत्तीसगढ़ राज्य वन विकास निगम कि स्थापना की
गई है वनों कि बहुलता के कारण ही प्रदेश अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पहचाना जाता है।
वन राज्य-शासन के राजस्व-आय का प्रमुख स्त्रोत है।
प्रस्तुत शोध - अध्ययन का अध्ययन करने तथा उपकल्पनाओं के परीक्षण के पश्चात्त हम यह कह सकते है कि छत्तीसगढ़ राज्य के
आर्थिक-विकास में निगम द्वारा वर्तमान में सहयोग दिया जा रहा है तथा भविष्य में सहयोग की की
कि दर में वृद्धि की
संभावना है। चूँकि छत्तीसगढ़ राज्य कि स्थापना की
भाँति ही निगम कि स्थापना को मात्र 15 वर्ष ही हुए है, अतः उन विगत 15 वर्षों में निगम द्वारा लाभ
राज्य-सरकार एवं केंद्र सरकार को मिल रहा है तथा विभिन्न - क्षेत्रों का विकास हो
रहा है इस आधार पर हम कह सकते है कि निगम कि स्थापना से छत्तीसगढ़ राज्य को
आर्थिक- सहयोग के साथ ही साथ राज्य के आर्थिक-विकास में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभा
रहा है, भविष्य में निगम द्वारा राज्य के विकास
में पूर्ण रूप से सहयोग कि अपेक्षा है जोकि निगम द्वारा संचालित
विभिन्न क्षेत्रीय-परियोजनाएँ, योजनाएँ
एवं वृक्षारोपण द्वारा क्रियान्वित की जायेगी।
इस प्रकार उपरोक्त वर्णित तथ्यों
को शोध-विषय में सम्मिलित किया गया है।
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