हाजी अली दरगाह बॉम्बे के दक्षिण (साउथ) साइड है। शहर के बिकुल दिल में, यह दरगाह बॉम्बे का सबसे मशहूर दरगाह है। एक अति सुंदर इस्लामिक आर्किटेक्चर है जो की भारतीय है। हाजी अली दरगाह 1431 में एक मुस्लिम सौदागर पीर हाजी अली शाह की याद में बनवाई गई। जो लोग उनसे जुड़े हुए थे उन्होंने ऐसा बताया था की, पीर ने एक बार एक गरीब औरत को सड़क किनारे एक खाली पतीले के साथ रोते हुए देखा। जब पीर ने उससे उसके रोने और दुखी होने का कारन पूछा तो, उस औरत ने सिसकते हुए बताया, बाजार से जो तेल वह खरीद कर जा रही थी वो गिर गया और जब वो घर जाएगी तो उसका पति उसे पिटेगा। पीर ने उससे कहा की वह उसे वो जगह लेकर जाये जहां उसका तेल गिरा। वह उस मिट्टी में पीर ने जैसे ही हाथ मारा उसका पतीले में तेल वापस भर गया और वह गरीब औरत खुश होकर अपने घर चले गई।
कुछ दिनों बाद पीर हाजी अली शाह बुखारी को कुछ अजीब और परेशान करने वाले सपने आने लगे की उसने धरती को इस हरकत से चोट पहुंचाई है और पश्चाताप मैं वे जल्द ही बीमार पड़ गए और अपने अनुयायियों को आदेश दिया की जब वह मरे उसके शारीर को ताबूत सहित अरब सागर में बहा दें। हाजी अली जी के अंतिम शण अपने हज के दौरान मक्का जाते समय थे और जैसा उन्होंने कहा था उनके ताबूत को अरब सागर में बहाया गया परन्तु चमत्कार ऐसा हुआ की पीर बाबा की ताबूत बॉम्बे वर्ली के समुद्र के पथरीले किनारे में आकर फस गया और फिर उनकी याद में वहां दरगाह बनाया गया।
गुरुवार और शुक्रवार को इस दरगाह में बहुत से लोग जो की जात पात से दूर इस दरगाह अपनी मन्नत मांगने और पूरी होने पर शुक्रियां के भाव से यहाँ पर आते है। यहाँ पीर बाबा का आशीर्वाद हर किसी को सफल करता है। शुक्रवार को यहाँ क़व्वाली से पूरा दरगाह झूम उठता है। यह दरगाह यहाँ छोटे से टापू जो की तट से 500m की दुरी पर है। इस दरगाह में पहुंचने के लिए समुद्र की लहरों पर निर्भर है। जब लहरें बड़ी और गहरी होती होती है दरगाह का रास्ता बंद कर दिया जाता है। रस्ते के दोनों तरफ समंदर का पानी अपने आप में चमत्कार से काम नहीं।
यह दरगाह सफ़ेद मार्बल से बानी हुई है। दरगाह को लाल और हरी चादर से ढांका गया है जिसे चंडी के फ्रेम से सजाया गया और और मार्बल के पिल्लरों के बिच रख गया है। यहाँ मुख्या कमरे मे मार्बल के पिल्लरों में बड़ी ही खूबसूरत तरीके से कांच की नक्काशी की गई है। नीले, हरे, पिले रंग के कांच को ऐसे सजाया गया है की वे अरबी में अल्लाह के 99 नाम को दर्शाते है। जैसा की मुस्लिम परंपरा में है यहाँ पर मर्द और औरतों को उनकी परंपरा का आदर करने की सख्त हिदायत दी जाती है। जब यहाँ पर लहरें बड़ी और गहरी होती है दरगाह और कुछ नहीं बल्कि एक द्वीप की तरह दिखती है।
यह एक 600 साल पुराणी दरगाह है, जिसका रख रखाव रखना बहुत ही मुशिकल है पर यह चलता रहता है। यहाँ हर हफ्ते लगभग 80,000 श्रद्धालु आते है। यहाँ रखरखाव का काम 1960 से 1964 से गति में हो रहा था। वर्ष 2008 में दरगाह का फिर से चालू हुआ। दरगाह को फिर से मार्बल से सजाया गया और यह मार्बल मकराना, राजस्थान से लाया गया जो की ठीक वो ही जगह है जहां से ताजमहल के लिए मार्बल लाया गया था।
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कुछ दिनों बाद पीर हाजी अली शाह बुखारी को कुछ अजीब और परेशान करने वाले सपने आने लगे की उसने धरती को इस हरकत से चोट पहुंचाई है और पश्चाताप मैं वे जल्द ही बीमार पड़ गए और अपने अनुयायियों को आदेश दिया की जब वह मरे उसके शारीर को ताबूत सहित अरब सागर में बहा दें। हाजी अली जी के अंतिम शण अपने हज के दौरान मक्का जाते समय थे और जैसा उन्होंने कहा था उनके ताबूत को अरब सागर में बहाया गया परन्तु चमत्कार ऐसा हुआ की पीर बाबा की ताबूत बॉम्बे वर्ली के समुद्र के पथरीले किनारे में आकर फस गया और फिर उनकी याद में वहां दरगाह बनाया गया।
गुरुवार और शुक्रवार को इस दरगाह में बहुत से लोग जो की जात पात से दूर इस दरगाह अपनी मन्नत मांगने और पूरी होने पर शुक्रियां के भाव से यहाँ पर आते है। यहाँ पीर बाबा का आशीर्वाद हर किसी को सफल करता है। शुक्रवार को यहाँ क़व्वाली से पूरा दरगाह झूम उठता है। यह दरगाह यहाँ छोटे से टापू जो की तट से 500m की दुरी पर है। इस दरगाह में पहुंचने के लिए समुद्र की लहरों पर निर्भर है। जब लहरें बड़ी और गहरी होती होती है दरगाह का रास्ता बंद कर दिया जाता है। रस्ते के दोनों तरफ समंदर का पानी अपने आप में चमत्कार से काम नहीं।
यह दरगाह सफ़ेद मार्बल से बानी हुई है। दरगाह को लाल और हरी चादर से ढांका गया है जिसे चंडी के फ्रेम से सजाया गया और और मार्बल के पिल्लरों के बिच रख गया है। यहाँ मुख्या कमरे मे मार्बल के पिल्लरों में बड़ी ही खूबसूरत तरीके से कांच की नक्काशी की गई है। नीले, हरे, पिले रंग के कांच को ऐसे सजाया गया है की वे अरबी में अल्लाह के 99 नाम को दर्शाते है। जैसा की मुस्लिम परंपरा में है यहाँ पर मर्द और औरतों को उनकी परंपरा का आदर करने की सख्त हिदायत दी जाती है। जब यहाँ पर लहरें बड़ी और गहरी होती है दरगाह और कुछ नहीं बल्कि एक द्वीप की तरह दिखती है।
यह एक 600 साल पुराणी दरगाह है, जिसका रख रखाव रखना बहुत ही मुशिकल है पर यह चलता रहता है। यहाँ हर हफ्ते लगभग 80,000 श्रद्धालु आते है। यहाँ रखरखाव का काम 1960 से 1964 से गति में हो रहा था। वर्ष 2008 में दरगाह का फिर से चालू हुआ। दरगाह को फिर से मार्बल से सजाया गया और यह मार्बल मकराना, राजस्थान से लाया गया जो की ठीक वो ही जगह है जहां से ताजमहल के लिए मार्बल लाया गया था।
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